शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

सद्-बुद्धि

कटनी, मध्यप्रदेश का एक शानदार शहर, रेलवे का एक बड़ा जंक्शन.कटनी नाम वधशाला से उत्पन्न हुआ. ये पुराना स्लॉटर हाउस अभी भी वहां हो सकता है. कटनी के विषय में खास बात ये है कि यह भारत देश का केंद्र बिंदु है. इस आशय का एक स्तंभ यहाँ गढा हुआ है. एक बड़ी सरकारी आर्डिनेंस फेक्टरी के बगल में हीटप्रूफ सिरेमिक ईटें बनाने का कारखाना काफी पुराना है जिसे कुछ समय पहले ए.सी.सी. ने किसी और ओद्योगिक घराने को बेच दिया है.

इसी कारखाने में विभूति मिश्रा बतौर फिटर लगभग तीस वर्ष काम करते रहे. कम्पनी ने एक वालेंटरी रिटायरमेंट स्कीम निकाली, जिसके तहत पचास पार उम्र के कर्मचारी रिटायरमेंट लेकर अपने जवान बेटे को एवजी में काम पर लगवा सकते थे. विभूति मिश्रा का एक ही सुपुत्र था कौशल मिश्रा, सो मौक़ा था उन्होंने बेटे को नौकरी पर लगवा दिया और खुद रिटायरमेंट का आनंद लेने लगे. पेंशन थी नहीं क्योंकि पुराने कर्मचारियों से जब १९७१ में पेंशन या प्रोविडेंट फंड का आप्शन   माँगा गया था तो उन्होंने फंड का आप्शन दिया था क्योंकि पेंशन के लिए फंड में से ३% राशि इसमें कटने जा रही थी. फिर भी कंपनी से ग्रेच्युटी व फंड मिला कर दस लाख रूपये उनको मिल गये. उन्होंने छ: लाख में माधव नगर में बेटे के नाम से एक घर खरीद लिया शेष चार लाख रूपये पोस्ट आफिस की MIS (मंथली इनकम स्कीम) में डाल दिए.

घर में सब आनंद चल रहा था. दो साल बाद उनकी पत्नी चल बसी और वे एकाकी रह गए. लेकिन बेटे-बहू ने उनका विशेष ख्याल रखना शुरू कर दिया. अड़ोसी-पड़ोसी लोगों से उन्होंने कोई दोस्ती नहीं रखी. दोनों तरफ सिंधी परिवार रहते थे. MIS  का ब्याज छ: साल तक लेते रहे, उसमें से पांच सौ अपना जेब खर्च रख कर बाकी सब बहू के हाथ में रख देते थे. इस बीच वह काफी अंतर्मुखी भी हो गए थे. MIS  को उन्होंने रीन्यू नहीं किया, सोचा न जाने कब जिंदगी की शाम हो जाये? उन्होंने पूरे का पूरा रुपया बेटे के खाते में डाल दिया और अपना खाता बंद करवा दिया. बेटा-बहू खुश थे खान-पान व कपड़ों इत्यादि में कोई कसर नहीं रखी जाती रही. लेकिन विधि का विधान है कुछ समय बाद हर मामले में कुछ ढील-ढाल होने लगी. ऐसा वक्त भी आने लगा कि बुड्ढे जी को जेब खर्च के लिए पैसा माँगना पड़ने लगा. उसको महसूस हो रहा था कि सारा रुपया देकर गलती कर डाली है. उनके एक पुराने साथी हरिओम दुबे ने आग में घी का काम कर दिया उसने कहा कि  थोड़े दिनों के बाद ये बेटा-बहू तुझे लात मारेंगे, ध्यान रखना."

इस बीच सूखी ठण्ड पड़ रही थी, वह सुबह-सवेरे घूमने गए तो ठण्ड खा गये. बीमार हो गए. डाक्टरों ने निमोनियां की शिकायत बता दी. कुछ ठीक तो हो गए पर मिजाज में चिड़चिड़ापन आ गया. छोटी-छोटी बातों पर बहू पर झल्ला जाते थे. बहू सहनशील थी, सहती रही. कभी चाय में देर हो जाये, खाने में नमक-मिर्च कम-ज्यादे हो जाये तो मिश्रा जी बहू के सात पुश्तों का श्राद्ध करने लगे. तलवार के घाव तो भर जाते हैं, लेकिन बोल के घाव रिसते रहते हैं. बहू रोज ही कौशल से ससुर जी की शिकायत कर रही थी. एक दिन कौशल ने पिता जी को समझाने के लिए कुछ कहना चाहा तो उन्होंने बेटे से भी अपशब्द कह डाले. यों रिश्ते दिन-प्रतिदिन बिगड़ते चले गए. अब तो बहू भी ढीठ हो चली थी, जवाब तो कम ही देती थी पर सेवा भाव समाप्त हो गया था. ये कम से कम साल-दो साल तक चला. घर में तनाव रहता था. बुड्ढा जानबूझ कर पानी गिरा देता था या रस्ते में थूक देता था ताकि बहू को साफ़ करना पड़े. 

विभूति मिश्र इतने कमजोर हो गए कि इधर उधर आना-जाना मुश्किल हो गया. उनकी जुबान अभी भी अपशब्दों से ही खुलती थी. एक दिन बहू ने कौशल से सीरियसली कह डाला, अब इस घर में ये बुड्ढा रहेगा या मैं रहूँगी. कौशल असमंजस में था. उसे पिता जी का अत्याचार साफ़ दिखाई और सुनाई दे रहा था. उसे लगा कि अब पिता से निजात पाना ही पडेगा. एक रविवार उसने रिक्शा बुलाया और पिता से बोला, चलो पिता जी आज मौसम अच्छा है आपको बाहर घुमा कर लाता हूँ.

बिभूति मिश्रा बड़े प्रसन्न हुए, उन्होंने सोचा कि बहुत दिनों के बाद बेटे को सद्-बुद्धि आई है. लाठी टेक कर धीरे से रिक्शे पर बैठ गए. रिक्शेवाला कौशल के निर्देशानुसार सीधे दुबे नगर होते हुए हाई-वे नम्बर ७८ पर ८-१० किलोमीटर दूर ले गया. वहाँ रोड के किनारे एक पेड़ था, पेड़ के नीचे एक चबूतरा था. कौशल ने रिक्शा रुकवाया और पिता को विश्राम देने के बहाने चबूतरे पर उतार दिया तथा स्वयं रिक्शे में बैठ कर वापस जाने लगा. उधर बुड्ढे को अहसास हो गया कि बेटा उसे त्याग कर जा रहा है, सो जोर से आवाज लगा कर बोला, कौशल, एक बात सुनता जा, मैं तुझे बताना भूल गया था.

कौशल के कानों में ये पूरा वाक्य आया, उसने सोचा बुड्ढे ने कहीं अन्यत्र रूपये रखे हों, बताना चाहता है. तो वह वापस चबूतरे पर लौटा. बिभूति मिश्रा ने कहा, बेटा, मुझे मालूम हो गया है कि तंग आकार तू मुझे यहाँ छोड़ कर जा रहा है. पर एक बात मैं तुझे बताना भूल गया था कि मैं भी अपने बाप को यहाँ इसी चबूतरे पर छोड़ गया था, इतना कह कर बुड्ढा रोने लगा.

कौशल ने थोड़ी देर सोचा और पुन: बाप को रिक्शे में बिठा कर वापस घर ले गया.

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