शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

व्यथा

दिल्ली के सफर में मेरी टोपी बदल गयी.
     मैं देश का हूँ नेता
     मैं सबकी नाव खेता
     मैं घूस भी ना लेता
पर मेरे साथ जो हुई, बहुत ही बुरी हुई
कि दिल्ली के सफर मैं मेरी टोपी बदल गयी.

     मैं बना होता मन्त्री
     मुझे मिले होते संतरी
     मैंने पढ़ा ली थी जन्त्री
होनहार बात, किस्मत की ऐसी मार हुई
कि दिल्ली के सफर में मेरी टोपी बदल गयी.

     मैं किसको सुनाऊँ रोना
     इसे जादू कहूँ या टोना
     खुद बन गया हूँ बौना
कोई नहीं रहा अपना, सब दुनिया बदल गयी
कि दिल्ली के सफर में मेरी टोपी बदल गयी.

     बुरा हो इस रेल का
     या चमेली के तेल का
     बरसों पुराने मेल का
सोते में मेरे सर से टोपी खिसक गयी
कि दिल्ली के सफर में मेरी टोपी बदल गयी.

     बनने चला था बादशाह
     रस्ते में हो गया हादसा
     तमाशा बना हूँ खासा
सारी उम्र की करनी पानी में चली गयी,
कि दिल्ली के सफर में मेरी टोपी बदल गयी.

     मैं घर से निकला था ऐसे
     बन ठन के दूल्हे जैसा
     वर्णन करूँ में कैसे
खुद के ही हाथों अपनी आबरू उतर गयी
कि दिल्ली के सफर में मेरी टोपी बदल गयी

      मेरी बीवी बड़ी सयानी   
      उसने असलियत थी जानी
      कहती थी यों कहानी
टोपी अदल-बदल में बहुतों की कुर्सी खिसक गयी
कि दिल्ली के सफर में मेरी टोपी बदल गयी.

     मेरे जेल के सब साथी
     खा-पी बने हैं हाथी
     फुलाए बैठे हैं छाती
कीमा भरी थी थाली हड्डी अटक गयी
कि दिल्ली के सफर में मेरे टोपी बदल गयी.

     मैं गांधी जी का चेला
     लाठी गोलियों को झेला
     आज भीड़ में अकेला
दौड़ा तो में ठीक था पर टांगें उलझ गयी
कि दिल्ली के सफर में मेरी टोपी बदल गयी.

     मैं बुद्दू बन के लौटा
     ले बदला हुआ मुखौटा
     पिटा हुआ सा गोटा
मेरा हाल देख कर मेरी बीवी समझ गयी
कि दिल्ली के सफर में मेरी टोपी बदल गयी.

                 ***

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