कैलाशपति हाईस्कूल में मेरा क्लासमेट था. वह उम्र व शरीर के साइज में मुझ से बड़ा था इसलिए उसको पीछे की बेंच पर सीट मिली थी. उसकी रिश्तेदारी मेरी बिरादरी में थी, लेकिन तब हमने उस रिश्ते को कोई महत्व नहीं दिया था. फिर भी उसके और मेरे बीच अच्छे सम्बन्ध थे. वह अक्सर गणित के प्रश्न लेकर मेरे पास आता था क्योंकि मेरी गणित अच्छी थी. कैलाश को सभी लड़के इस नाते भी ज्यादे जानते थे कि उसके पिता भोलादत्त बहुत अच्छे भग्नौल और चांचरी गायक थे. हुडके की थाप पर लोग मस्त हो जाते थे. खेतों में सामूहिक धान रोपाई या गोड़ाई में अक्सर उनको गायन के लिए बुलाया जाता था.
हाई स्कूल के बाद मेंने इंटर में प्रवेश ले लिया था. उसके बाद कैलाश के बारे में मैंने कभी जानने की कोशिश भी नहीं की. बहुत सालों के बाद एक बार जब मैं सर्विस से छुट्टी लेकर आया था और एक बरात में गया था तो मैंने कैलाश की चर्चाएँ सुनी तो विश्वास नहीं हुआ कि वह इतनी जल्दी इतनी ऊँचाई कैसे छू गया.
हम कूर्मांचल के ग्रामीण परिवेश में पले हुए लड़के बहुत इंटेलीजेंट या जीनियस नहीं थे, बस उद्देश्य होता था पढ़ कर नौकरी पर लग जाएँ. क्लर्क, पटवारी, रेंजर, या अध्यापक तक हमारी मंजिल होती थी. हाँ आर्मी में भर्ती होना ज्यादा सुगम था. मेरी बड़ी जमात-रिस्तेदारी के लोग आर्मी में थे अत: में भी सिपाही रंगरूट भर्ती हो गया और बाद में छब्बीस वर्ष सेवा के बाद सूबेदार बन कर पेन्शन आया.
सन साठ के दशक में यू.पी. में जेटीसी टीचरों को ६० रुपये वेतन मिलता था जबकि उसी दौरान दिल्ली के चपरासियों को ८० रूपये वेतन मिलता था इसलिए ज्यादातर लड़के दिल्ली दौड़ने लगे थे. कैलाश भी किसी रिश्तेदार के साथ दिल्ली चला गया. पहाड़गंज में एक वेल्डिंग रौड की बड़ी दूकान पर नौकर हो गया. सेठ जी के ही कारखाने में रौड बनते थे, उनके पैकिंग व बाहर शहरों को भेजने का काम दूकान पर होता था. दो साल काम करने के बाद कैलाश को इसका पूरा व्यापार समझ में आ गया. उसने रौड बनाने की प्रक्रिया व रा-मैटीरियल के साधन-स्थान उपलब्धि के बारे में सारी जानकारी हासिल कर ली. भाग्यवश वह अब सेठ जी का विश्वासपात्र कारिन्दा भी बन गया था. उसको दिल्ली के बाहर यू.पी. व राजस्थान में माल सप्लाई करने तथा वसूली करके लाने का काम सौंप दिया गया जिसे वह बखूबी अंजाम देने लगा.
एक दिन कैलाश ने सोचा इस धन्धे में लाभ का इतना बड़ा मार्जिन है क्यों न अपना अलग कारोबार भी किया जाए? कारखाने में से दो कुमाउनी लड़कों को अपने साथ मिला कर किंग्स वे कैम्प में एक छोटा सा कारखाना शुरू कर दिया. पैकिंग में ट्रेडमार्क व अन्य छपाई सेठ जी वाली ही रक्खी. अब वह ग्राहकों को सेठ जी का माल कम अपना ज्यादा बेच कर आता था. धन्धा जोरों से चल पड़ा. बहुत कम समय में लाखों रूपये कमा लिए. जब तक सेठ जी को असलियत का पता चलता व्यापार खूब आगे बढ़ चुका था. झगड़ा-लफड़ा, अदालत सभी कुछ हुआ बाद में मामला निबट गया.
अब कैलाशपति केपी सेठ कहलाने लग गया. उसने हमारे इलाके के कई मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया. जहाँ जहाँ उसने काम कराया अपना नाम भी लिखवाया. मैं जब रिटायर हो कर घर आया तो पूरे इलाके में उसके नाम की धूम थी. वह दानवीर भी हो गया. लोगों को छोटी-मोटी आर्थिक मदद भी करता था. दिल्ली नोएडा में कारखाना व घर था. एक बँगला काठगोदाम में तथा एक बँगला बागेश्वर में था. चूंकि उसके पास चमत्कारिक शक्ति थी और दुनिया चमत्कार को नमस्कार करती है.
उत्तरायणी के मौके पर जब वह बागेश्वर प्रवास पर था तो मेरा मन हुआ कि एक बार उससे अवश्य मिलूँ. उसका वही पुराना चेहरा मेरे ख्यालों में था. मैं जब उसके आवास कठायत बाड़ा पहुँचा तो देखा दुमंजिली शानदार कोठी है, पोर्च में, दो बड़ी-बड़ी गाडियां खडी थी, गेट के पास एक जर्मन शेफर्ड कुत्ता बंधा हुआ था; यानि पूरे ठाठ. मैं सहमा-सहमा गेट के पास पँहुचा तो कुत्ता जोर से भूकने लगा. एक नौकर दौड़ कर आया मेरी उपस्थिति का कारण जानने लगा तो मैंने उसको कहा कि कैलाश जी से मिलना है. वह पहले समझा नहीं क्योकि अब सब लोग उसे केवल करोड़पति सेठ के ही नाम से जानते थे.
मैं अन्दर गया. करोड़पति अपने एयरकंडीशंड बैठक में सोफा पर बैठा था. वह बृद्ध हो चला था. सर पर सफ़ेद गांधी टोपी, सफ़ेद कुर्ता-धोती, क्लीन सेव, भोंहें सफ़ेद, चेहरे पर बड़े-बड़े खड़े रिंकल्स और आखों पर मोटे फ्रेम का चश्मा. हम एक दूसरे को नहीं पहचान सकते थे. मैंने नमस्कार के बाद अपना नाम बताया और कहा कि हम साथ पढ़ते थे. उसने मुझे बिठाया और बहुत देर तक गुमसुम बैठा रहा. मैंने पाया कि उसके आखों से आंसू बह रहे थे, वह सुबक रहा था. जब वह संयत हुआ तो बोला, “तुम बहुत भाग्यशाली हो, सेना में चले गए, तुमको देख कर लग रहा है कि तुम अभी भी जवान हो और स्वस्थ हो. मैं अन्दर बाहर सब तरफ से बीमार हूँ. मुझे डाईबीटीज है, हाईपरटेंसन है, प्रोस्टेट एनलार्ज है और शरीर के एक अंग में लकवा है. ये दौलत किस काम की है? न खा सकता हूँ न चाल पाता हूँ. केवल नाम का करोड़पति हूँ.” ऐसा कह कर वह पुन: अनंत शोक व दु:ख के सागर में चला गया.
मैं थोड़ी देर और चुपचाप बैठ कर बाहर आ गया हूँ. एक अनबूझ ग्लानि सी मुझे भी हो रही है, सोचता हूँ कि यहाँ न आता तो अच्छा था.
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jeewan ka asleerop.
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