मंगलवार, 27 सितंबर 2011

चढावा


ठाकुर चंद्रप्रताप सिंह के कोई संतान नहीं थी. नि:संतान होना बड़े दु:ख का कारण होता है. हालाँकि संतान के कारण भी  कई लोग ज्यादा दु:खी हो जाते है.  

एक दिन वे पत्नी सहित गाँव के शिव मंदिर में गए और सच्चे मन से उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि उन्हें भी संतान लाभ कराएं. साथ ही उन्होंने भगवान को यह रिश्वत का वायदा भी किया कि अगर संतान प्राप्त हो गयी तो वे एक किलो सोने की घंटी बनवाकर मंदिर को समर्पित करेंगे. भगवान की कृपा या संयोग कुछ भी कहिये एक वर्ष के बाद उनके घर में एक सुन्दर कन्या रत्न उत्पन्न हो गयी.

ठाकुर साहब अपना वायदा भूले नहीं थे. उन्होंने सुनार से एक किलो सोने की घंटी बनवाई और संकल्प पूर्वक मंदिर में ले गए, जहाँ पुजारी ने उसे स्वीकार करने में असमर्थता बता दी. पुजारी का कहना था कि यहाँ लोग पीतल की घंटी नहीं छोड़ते हैं, सोने को कौन छोड़ेगा.

बाद में विचार विमर्श के बाद तय हुआ कि पूरे मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया जायेगा तथा मजबूत ताला कूची व गेट का इन्तजाम किया जायेगा. शंकर भगवान की नई आदमकद संगेमरमर की मूर्ति लगाई गयी और सोने की घंटी ठीक मूर्ती की सीध में ऊपर गुम्बद पर टांग दी गयी और उसे बजाने के लिए एक पतली सी डोरी बाँध दी गयी.

मंदिर का काम पूरा होने पर प्राण-प्रतिष्ठा व भोग-भोजन सभी हुआ. ठाकुर की मनौती पूरी हो गयी. घंटी की चर्चा गाँव-पड़ोस में दूर दूर तक फ़ैल गयी.

व्यवहारिक जीवन में ताला-शटर तो शरीफ लोगों के लिए होते हैं. एक शातिर चोर घंटी चुराने की फिराक में रहने लगा. एक दिन संध्या के समय झुरमुट अँधेरे में जब बाहर हल्की बारिश भी हो रही थी. पुजारी दिया-आरती करके कहीं निमंत्रण में भोजन करने चला गया तो चोर ने ताला-शटर तोड़ डाला और अन्दर दाखिल हो गया.

चूंकि घंटी ऊंचाई पर थी, इसलिए घंटी उतारने का एक ही उपाय था वह भगवान की मूर्ति पर धीरे धीरे उनके गर्दन तक चढ गया. घंटी हाथ में आते ही खींच ली और उतर कर नीचे आ गया.

अब भगवान शंकर साक्षात प्रकट हो गए और उनको देख कर चोर की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी. वह घबरा गया और हाथ जोड़ कर मांफी मागने लगा. लेकिन भगवान थे कि त्रिशूल मारने के बजाय उससे हँस कर बोले, भक्त मैं तुझसे बहुत खुश हूँ. मांग क्या वरदान माँगता है?

चोर रिरिया रहा था. भगवान ने फिर कहा तू घबरा मत. क्या चाहिए मांग ले.

चोर को थोड़ी हिम्मत हुई और बोला, भगवान मैं अधम पापी हूँ फिर भी आप किस कारण मुझसे प्रसन्न हो रहे हैं?
भोले बोले, देख! मैंने लाखों-करोड़ों भक्तों को देखा है. कोई फूल चढ़ाता है, कोई पैसा चढ़ाता है, कोई कोई भांग धतूरा चढ़ाता है, कोई दूध चढ़ाता है तो कोई बेल-पत्र चढ़ाता है; लेकिन तेरा जैसा भक्त मेरे पास आज ही आया, तू तो साला पूरा का पूरा मुझ पर चढ़ गया.
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