बुधवार, 14 सितंबर 2011

सेठ कूड़ामल की पगड़ी

हम भारतीयों के समाज में अनेक प्रकार के अन्धविश्वास हैं. ये हमारे संस्कारों में बहुत गहरे तक जड़ें जमाए हुए हैं. विज्ञान अपनी जगह है लेकिन जब खुद पर आ पड़ती है तो लोग टोटके करते ही हैं.

पहले बाल-मृत्युदर बहुत ज्यादा होती थी. कारण थे, कुपोषण, अज्ञानता, अस्वास्थ्यकर परिस्थितियाँ इत्यादि. अब धीरे-धीरे शिक्षा व स्वच्छता के मानदंडों के अपनाने से आंकड़े पहले से काफी कम हो गए हैं. किन्तु गाँवों में इस दिशा में अभी भी बहुत अन्धेरा है. किसी के बच्चे पैदा होने के बाद यदि किन्ही कारणों से ज़िंदा नहीं बचते हों तो हमारे कूर्मांचल में बच्चे का नामकरण बचीराम या बचीसिंह कर दिया जाता है. कहीं-कहीं बच्चे को किसी बाबा-साधू को अर्पित कर दिया जाता है, साथ ही कुछ नाममात्र कीमत देकर खरीद लिया जाता है. राजस्थान में बच्चे को गोबर में रख दिया जाता है, नाम रखा जाता है गोबरीलाल, या बच्चे का नाक-छेदन करके नाम दिया जाता है नाथूलाल, नाथूसिंह, या नाथूखान. इसी प्रकार बच्चे को कूड़े में डाल कर निकाल लिया जाता है और नाम रखा जाता है कूड़ामल. अन्य प्रदेशों में भी ऐसे अनेक प्रकार के टोटके किये जाते हैं.

इस कहानी के पात्र कूड़ामल का जन्म भारत विभाजन से पहले कराची में हुआ था. उसके पिता रोहड़ीमल लखानी की पुश्तैनी कपड़ों की दूकान रशीदाबाद मेन बाजार में थी. लूटपाट-मारकाट होने लगी. सारी व्यवस्था तहस-नहस हो गयी, जान के लाले पड़ गए. रोहाडीमल अपने परिवार को सुरक्षित निकाल कर जयपुर ले आये. काफी समय तक सिंधी कैप में रहे, बाद में धीरे-धीरे स्वरोजगार की सोचने लगे. रोहडीमल ने अपनी रोकड़ चार लाख रुपये व घर के जेवर बहुत हिफाजत से छुपाये रखे थे, जो व्यापार शुरू करने व आगे बढ़ाने के काम आये. यह भी सौभाग्य रहा कि क्लेम करने पर उसको दो लाख रूपये कम्पनसेशन भी मिल गया. रोहड़ीमल ने नए बने बापू बाजार में दूकान प्राप्त कर ली. कुछ दिन दोनों बेटे साथ में काम करते रहे. कपडे का व्यापार उनको मालूम था. बाद में बड़े बेटे कूडामल ने मुम्बई में संपर्क बढाकर, भूलेश्वर में अपनी खुद के आढत खोल ली, जो अच्छी चल पडी.

यहाँ ये बात विशेष रूप से ध्यान में रखने की है कि हिन्दुस्तान से जो मुसलमान शरणार्थी बन कर पाकिस्तान चले गए थे वे आज भी मुजाहिर (शरणार्थी) ही कहलाते हैं और कहते हैं कि आज भी उनको मुख्य धारा में जगह नहीं मिल सकी है जबकि पाकिस्तान से आये हुए सभी लोग समाज में, व्यापार तथा राजनीति में अपने अध्यवसाय व मेहनत के बल पर अग्रिम पंक्ति में आ गए है.

पन्द्रह वर्षों के अंतराल में कूड़ामल अब सेठ कूड़ामल हो गया. उसका व्यापारिक नेटवर्क महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान तक फ़ैल गया. मुम्बई में घर ले लिया था, आफिस व गोदाम सभी अच्छा कर लिया. आठ-दस मुनीम-गुमास्ते आफिस में काम करते थे. पर सेठ जी थे बड़े ही कंजूस थे, नौकरों को लेने-देने में कुन्नटबाजी जरूर करते थे.

एक दिन आफिस में सभी कर्मचारी अपने-अपने काम पर लगे थे सेठ जी अपनी पगड़ी गद्दी पर रख कर बगल वाले कमरे में जाकर विश्राम करने के लिए लेट गए. नौकरों ने सोचा सेठ जी कहीं बाहर निकल गए हैं. पीरू घानेकर, गुमास्तों में कुछ चपल, चालाक और मसखरा था. उम्र में भी वह सबसे छोटा था. उसको शरारत सूझी और सेठ जी की पगड़ी अपने सर पर रख कर मजे से नाम ले ले कर गुमास्तों से पूछने लगा, तुमको कितनी पगार चाहिए?
साथ ही वह किसी की पगार ७५ रूपये, किसी की १०० रूपये, और किसी की १५० रूपये बढ़ाने की घोषणाएं कर रहा था. सारे गुमास्ते उसकी मसखरी का मजा ले रहे थे. उधर सेठ जी सारे डायलॉग सुन रहे थे.

थोड़ी देर बाद जब सेठ कूड़ामल खांसते-खंकारते हुए बाहर आया तो हल्ला-गुल्ला बन्द हो गया. पीरू लज्जित तो हुआ पर हाथ जोड़ कर माफी मागने के अलावा उसके पास कोई चारा न था.

सेठ कूड़ामल कुछ देर गंभीर होकर बैठा रहा फिर उसने अपने अकाउंटेंट गुमास्ते से कहा, पीरू ने जिसकी जितनी पगार बढ़ाने की घोषणा की है वह उसे नोट कर ले क्योंकि पीरू ने मेरी पगड़ी पहन कर ये आदेश किये हैं.

चूंकि पीरू ने अपनी पगार खुद नहीं बढ़ाई थी, उसे कुछ नहीं मिला.

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