विमल मित्र बँगला साहित्य के श्रेष्ट कथाकारों में से एक थे. उन्होंने सौ से ज्यादा उपन्यास व लघु कथाएं लिखी है. समाज की विषमताओं तथा समकालीन समस्याओं पर उनकी लेखनी अनूठी थी. जिन सुधी पाठकों को उनका साहित्य पढ़ने का अवसर नहीं मिल पाया है, मैं उनसे अनुरोध करूँगा कि जब कभी समय मिले विमल दा की रचनाओं को अवश्य पढ़ें. आमि अर्थात मैं में उन्होंने जीवन दर्शन का एक बड़ा खूबसूरत आख्यान दे रखा है जिसे मैं अपने पाठकों को अपने शब्दों में सुनाना चाहता हूँ:
एक भला आदमी रेलवे में नौकरी करता था. जब रिटायरमेंट का समय नजदीक आ रहा था तो उसने अपने अफसर से निवेदन किया कि उसके इकलौते लड़के को उसकी एवज में नौकरी पर रख लिया जाये. उसकी वफादारी और नेकी को ध्यान में रख कर अधिकारियों ने उसको रिटायरमेंट दे दिया और उसके बेटे केस्टो को ड्यूटी पर ले लिया. बुड्ढे को पेंशन मिलाने लगी. घर में एक पोता भी था जिसके साथ खेलकर वह रिटायरमेंट का भरपूर आनंद ले रहा था. सब कुछ ठीक चल रहा था. केस्टो को रनिंग स्टाफ में रखा गया था; दुर्भाग्य से छ:महीने बाद ही एक रेल दुर्घटना में केस्टो की मृत्यु हो गयी.
परिवार पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा. असह्य वेदना व पुत्र-शोक में सब तहस-नहस हो गया. पर धीरे-धीरे समय के साथ दर्द कम होता गया. दुबारा नए सिरे से जिंदगी की ए बी सी शुरू करनी बृद्ध पिता को भारी पड़ रही थी, लेकिन कोई विकल्प नहीं था. इस तरह करीब एक साल गुजर गया. एक दिन दोपहर के वक्त बुड्ढा जब घर के बाहर पेड़ की छाया में विश्राम कर रहा था तो उसका पोता दौड़ा-दौड़ा आया और बोला, “मेरा बापू तालाब के पाल पर खडा है, चलो देखो.” दादा ने कहा, “मैं उसको अपने हाथों जला कर आया था, वह पाल पर ज़िंदा कैसे हो सकता है?”
बच्चा नहीं माना. जिद पर आ गया और बोला, “वह पक्का मेरा बापू केस्टो ही है. मुझको देख कर वह मुस्कुरा भी रहा था. आप चलो तो सही.”
इस प्रकार पोते की बात पर असमंजस में पड़ा बुड्ढा गाँव के तालाब की ओर चल पड़ा. जाकर देखा तो सचमुच केस्टो वहाँ खड़ा था. उसके नजदीक जाकर आश्चर्य पूर्वक उसने पूछा, “बेटा तुम ज़िंदा हो?”
केस्टो ने एक सांस में कहा, “पहली बात तो ये है कि मैं किसी का बेटा नहीं हूँ. पिछले जन्म में आप लोगों से मेरा सम्बन्ध था इसलिए आप लोग मेरे सूक्ष्म शरीर को देख पा रहे है. मैं यमराज का दूत हूँ. ग्राम प्रधान के लड़के को लेने आया हूँ. आप लोग यहाँ से जल्दी चले जाइए. मुझे मेरा काम करने दें.”
बुड्ढा बोला, “बहुत अच्छा है. तू जहां है, जैसा है, खुश रह, हमको तेरी कमाई भी नहीं चाहिये, लेकिन जब मेरी बारी आये तो तू छ: महीने पहले बता जाना ताकि मैं तेरे बाल-बच्चों की पूरी व्यवस्था करके आऊँ.”
केस्टो बड़ी जल्दी में था बोला, “ठीक है, ठीक है, अभी आप जाइए मैं यमराज जी को आपकी बात बता दूंगा.”
दादा-पोता दोनों घर आ गये, थोड़ी देर में खबर आई कि गाँव के प्रधान जी का लड़का तालाब में डूब कर मर गया है. अब तो बुड्ढे को पूरा यकीन हो गया कि केस्टो यमराज जी के पास काम कर रहा है.
इस प्रकार पुन: परिवार में नव चेतना व हंसी-खुशी का माहौल उत्पन्न हो गया. बुड्ढा इस बात से आश्वस्त हो गया कि उसको अपनी मौत की खबर छ: महीने पहले मिल जायेगी.
दिन स्वत: ही जा रहे थे करीब ८-१० महीने के बाद बुड्ढा कुछ अस्वस्थ सा कमरे में चारपाई पर पड़ा था किसी ने बाहर से कमरे का कुन्दा खड़खड़ाया, बुड्ढे ने पोते को आवाज दी पर उसका आता-पता नहीं था. फिर बहू को आवाज दी. उसका भी कोई जवाब नहीं मिला तो वह स्वयं कराहते हुए उठा और दरवाजा खोला. सामने केस्टो खड़ा था. बुड्ढे ने कहा “बेटा आ गए छ: महीने का नोटिस लेकर?”
केस्टो बोला “देखिये, मैंने यमराज जी को आपकी बात बता दी थी उन्होंने बताया कि ये कोई रेलवे की नौकरी थोड़े ही है कि छ: महीने पहले रिटायरमेंट का नोटिस पकड़ा दें. हमने तो आपको कई नोटिस दे रखे हैं. दांत गिर गए--एक नोटिस, आँखों की रोशनी कम हो गयी--दूसरा नोटिस, बाल सफ़ेद हो गए--तीसरा नोटिस, घुटने काम नहीं कर रहे है--चौथा नोटिस. नोटिस पर नोटिस, कई नोटिस, और आप अभी चलिए मैं लेने ही आया हूँ.” और वह उसे ले गया.
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