रविवार, 2 अक्तूबर 2011

गाँधी तेरे नाम पर.

(ये रचना मैंने बापू की सौवीं वर्षगांठ पर १९६९ में लिखी थी. आज भी प्रासंगिक है.)

आज मना लूँ खुशियाँ मैं         
 गाँधी तेरे नाम पर.
  तुम भारत की माटी में
   जन्म लिए, साकार हुए
    इसीलिये अधिकार है मेरा-
     गाँधी तेरे नाम पर.

तेरी विरासत को मैंने
 बंद कमरों में रखा है
  हिफाजत से सम्हाल कर.
   उन कमरों पर पूरी तरह-
    मेरा कब्जा भी हो गया है.
     इसलिए अब मैं
      खाली हिस्सेदार ही नहीं-
       खातेदार भी बन गया हूँ.

अब गाँधी दर्शन पर
 तेरा तो सिर्फ नाम है
  मालिक मैं बन गया हूँ.
   जैसे भगवत गीता पर
    नाम कृष्ण का चलता है
     रॉयल्टी गीता प्रेस को मिलती है
      वैसे ही तेरा तो सिर्फ नाम चलेगा,
       रॉयल्टी मुझे मिलेगी.

जब मैं सुनता हूँ-
 तुम अब सौ बरस पूरे कर रहे हो
  मुझे अजीब सा लगता है
   हमने तो तुम्हारे सौ बरस
    सन अडचालीस में ही पूरे कर दिए थे.

अब तो शायद लोग-
 मुझको ही गाँधी समझ रहे हैं.
  अगर मुझको धोखा ना हो तो
   आज हर जुबान पर मेरा नाम है.
    मेरी सौवीं वर्षगांठ पर
     ढेरों मुबारकबाद छाप रहे हैं.
      हर जुबान पर मेरा नाम है
       सर्वत्र जयगान हो रहा है
        मेरे नाम पर इनाम बंट रहे हैं.

अच्छा हुआ मनहूस दिनों में-
 मुझे गाँधी नाम नहीं मिला था
  अन्यथा भूखों मर गया होता-
   जेलों में तड़प कर,
    या गोली का निशाना बन गया होता-
     तेरी ही तरह.

तुमने कभी खुद ही कहा था-
 वक्त के साथ-साथ
  हर चीज की कीमत बदलती है.
   इसीलिये आज मैंने-
    गाँधी-दर्शन की नई व्याख्या करवा दी है.
     पुरानी खराब ना हो
      इसलिए नई जिल्द चढ़वा दी है.

कुछ मजबूरियाँ भी थी लेकिन
 तुम्हारा हर चेला-
  कार माँगता था,
   बँगला मागता था,
    खुद के लिए बेस्ट खादी-
     बीबी के लिए जापानी जार्जेट माँगता था.
      और इसके साथ-साथ-
       लाख व करोड़ के बीच-.
        विदेशी बैंक में खाता माँगता था.

वक्त, केवल बीस वर्ष,
 इतना कम था कि-
  मुझे अनशन या पदयात्रा का-
   ख़याल ही नहीं आया.
    इसीलिये बापू ! मैंने
     तुम्हारे नाम पर
      समाजबाद का लेबल लगवाकर
       सबको खुली छूट दे दी.

इसका नतीजा सही निकला
 आज मेरी जय गाने वाले
  यानि गाँधी की जय गाने वाले
   पहले से चौगुने हो गए हैं.

अब इस छीना-झपटी में 
 इस लूट-खसोट में,
  नहीं-नहीं!
   ये लूट-खसोट नहीं
    ये छीना-झपटी नहीं.
     ये तो समाजवादी आर्थिक क्रान्ति है.

अभी जिसके हाथ-
 खाली डब्बे लगे
  या पुराने बिस्तर ही लगे
   वह भी निराश नहीं हैं,
    क्योकि कुछ और मिल सकता है
     ये उम्मीद कायम है.

कुछ लोग जरूर निकम्मे हैं
 इन्हीं को गरीब कहते हैं.
  खुदा के घर से
   ऐसी तकदीर लिखवा कर लाए है
    जिंदगी भर मेहनत करेंगे
     आधा पेट भोजन करेंगे,
      खुले आसमान के नीचे सोयेंगे
       खुदा के विधान में दखल दे कर,
        मैं खुदा को नाराज नहीं कर सकता.

मैंने ये भी महसूस किया है
 ये लोग अपना साथ नहीं दे सकते हैं.
  आज मेरे जन्म-दिन पर
   जब जमाना छुट्टी पर है
    खेल-कूद मुशायरे हो रहे हैं,
     ये नालायक लोग
      मिट्टी खोदने,पत्थर ढोने में लगे हैं.
       नाचने-गाने के बजाय
        रिक्शा-ठेला खींचने में लगे हैं.
         कुल मीजान, मुझे-
          नीचा दिखाने की कोशिश में है

अब मैं आपको साफ़ साफ़ कह दूं
 छोटी-छोटी बातों के लिए समय नही है.

वैसे तो जातीय दंगे हर साल होते हैं,
 पर हाल मे अहमदाबाद में जो हुआ.
  वह नया परीक्षण है
   साबरमती के नजदीक
     मंदिर व मस्जिद दोनों तवाह हुए.
      कुछ सैकड़े लाशों को लोगों ने ढोया
       जिनमे बच्चे-औरतें ज्यादा थीं.

उनमे तुम्हारे गाँधीवादी कितने थे?
 मेरे गांधीवादी कितने थे?
  इसकी जाँच के लिए-
   एक कमीशन बैठेगा ,
    जिस पर दो-पांच लाख खर्च आएगा
     कमीशन का काम पूरा होने से पहले-
      कहीं दूसरी जगह दंगा हो जाएगा.

वैसे मूल सिद्धांत वही है
 ईश्वर अल्लाह एक ही नाम.
  याद करने के तरीके भर बदल गए हैं.

काले धन के अंशदान से
 एक धन्नासेठ से, नहीं-नहीं धन्ना सेठ नहीं-
  वह भारत-पुत्र है, भारत रत्न है.
   एक रिसर्च सेंटर खुलवाया है.
    जिसमे गांधीवादी अर्थनीति पर
     शोध करेंगे, खोज करेंगे;
      कल के गाँधी.

चूंकि आपके अपनेपन की लंगोट भी
 मैंने खिसका ली है
  खुद को भी नंगा कर डाला है
   मुझको मांफ कर देना
    माफ करना आपकी आदत भी है.


 तुम भारत की माटी में
  जन्म लिए, साकार हुए
   इसीलिये अधिकार है मेरा
    गाँधी तेरे नाम पर.
                       ***

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