विन्ध्य प्रदेश में पिछले तीन वर्षों से ढंग से वर्षा नहीं हुई इसलिए कास्तकार बड़ी विपत्ति में दिन काट रहे थे. उधर साहूकारों की बन आई. वे उनकी मजबूरियों का भरपूर लाभ ले रहे थे. रामकिसन की भी खेती चौपट थी. कैसे भी ऐंचा-पैचा कर के दिन काट रहे थे. उम्मीद कर रहे थे कि इस साल वर्षा अच्छी होगी तो सारे कष्ट दूर हो जायेंगे. राजा गजेन्द्र बहादुर ने इस अकाल की घड़ी में अपने अनाज के सुरक्षित भण्डार प्रजा के लिए खोल दिए थे. एक दो साल तक तो सब को राहत मिलती रही पर जब तीसरे वर्ष भण्डार में भी कमी हो गयी तो सहायता लगभग नाममात्र की रह गयी.
एक दिन रामकिसन अपनी पत्नी विद्यावती के साथ अपनी चिंताओं पर विमर्श कर रहा था क्योकि अब घर में अनाज आखिर आ चुका था तथा बैलों का चारा भी खतम होने वाला था. विद्यावती ने अपने जेवर निकाले और रामकिसन के हवाले करते हुए कहा, “अगर हम ना रहे और ये बैल ना रहे तो ये जेवर क्या काम आयेंगे? आप इनको बेच आओ. बुरा वक्त कट जायेगा.”
रामकिसान ने जेवरों की पोटली तो ले ली पर उसने स्वयं को पहले इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया था. अत: पत्नी के गहने बेचने में उसे कत्तई खुशी नहीं हो रही थी. अचानक उसके दिमाग में एक उपाय सूझा, ‘क्यों ना इनको बेचने के बजाय साहूकार के यहाँ गिरवी रख दिया जाये. फसल आने पर अगले साल छुडा लूंगा. 'विद्यावती को भी ये योजना ठीक लगी क्योंकि ये जेवर उसने शादी के समय से ही सहेज का रखे थे. उसके लिए ये अनमोल थे. पायजेब, झांजर, हँसली व कड़े सब मिला कर करीब आधा किलो चांदी और दो तोला सोना (गलाबंद व कर्ण फूल) कुल मिलाकर महज ५०० रुपयों मे साहुकार गोपीचंद के पास गिरवी रख दिए गए. गोपीचंद बड़ा काईयाँ आदमी था. बीच बाजार में उसका ठीया था. उसने रामकिसन के अंगूठे के निशान बही-खाते में ले लिए और लिखत कर ली कि १५ गते बैशाख तक अगर नहीं छुडाये गए तो जेवर जब्त हो जायेगे. ब्याज में एक मन गेहूं, एक मन बाजरा और दो पंसेरी चने भी देने होंगे.
बहरहाल विद्यावती भी खुश थी कि उसका ओरिजिनल जेवर सुरक्षित मिल जाएगा और रामकिसन खुश था कि पत्नी ने बुरे वक्त में उसका भरपूर साथ दिया. इन्द्रदेव की कृपा से उस साल बारिस भी खूब हुई. सभी कास्तकार निहाल हो गए. जानवरों को भरपूर चारा मिला. सर्वत्र आशा और उम्मीदों से लोग काम करने लगे.
फसल समेटने का समय आ गया लेकिन छिटपुट बारिश होते रहने से अनाज बेचने का काम लेट होता गया. रामकिसन को चिंता थी कि साहूकार से जेवर छुडाने की तारीख नजदीक आ रही थी फिर भी वह तीन दिन लेट हो गया जब वह मूल धन व ब्याज का अनाज लेकर साहूकार के ठीये पर पंहुचा तो गोपीचंद ने बेरुखी से उसको कहा कि “उसके जेवर जब्त हो चुके हैं क्योंकि लिखत के अनुसार वह तीन दिन देरी से आ रहा है.”
रामकिसन को साहूकार से ऐसी उम्मीद नहीं थी. उसने बहुत अनुनय-विनय की तथा अतिरिक्त ब्याज देने की पेशकश की लेकिन गोपीचंद तो मक्कार था उसने एक नहीं सुनी. आखिर रूपये व अनाज लेकर घर वापस आ गया. छलछलाती आँखों के साथ सारी बात विद्यावती को उसने बताई. उस शाम घर में खाना नहीं बना बच्चे भी बिलबिलाते हुए बासी-तूसी खाकर सो गए. पति-पत्नी को नीद कहाँ आती? यों ही पड़े रहे. आधी रात को विद्यावती ने उठकर रामकिसन को कहा, “आप कल राजा जी के पास जाकर साहूकार की शिकायत करिये मुझे पूरी आशा है कि वे हमारे जेवर अवश्य दिलवा देंगे.” रामकिसन को यह बात सही लगी.
राजमहल ज्यादा दूर नहीं था. अगले ही दिन वह राजा जी के न्याय मंच पर पहुच गया. उसने गुहार लगाने के लिए डोरी खींची. उसको अन्दर बुला लिया गया. रामकिसन ने सारी दास्ताँ राजा जी को सुना दी. राजा जी को उसके भोलेपन व सादगी पर बड़ी दया आई. एक बार तो उन्होंने गोपीचंद को दरबार में बुलाने की सोची पर फिर सोचा कि 'उसने चालाकी से अपनी तरफ से लिखत करवा रखी है. इसलिए मजबूर करना कानूनी रूप से ठीक नहीं होगा.’
राजा जी ने रामकिसन से कहा, “मैं कल शाम के समय जब शहर में घूमने आऊँगा तो तुम साहूकार के ठीये पर रहना और मुझको आवाज देना.”
अगले दिन राजा जी के निर्देशानुसार रामकिसन गोपीचंद साहूकार के ठीये पर समय पर पँहुच गया. जब राजा जी हाथी पर सवार होकर बाजार से गुजरे तो बाजार के सभी लोगों का ध्यान उन पर था. खुद गोपीचंद भी बाहर आ खड़ा हुआ था. ऐसे में रामकिसन ने उनको आवाज दी, “राजा जी की जय हो!”
रामकिसन की आवाज सुन कर राजा जी हाथी पर से नीचे उतरे और सीधे रामकिसन के पास जाकर उसको गले लगा लिया और प्यार से बोले, “तुम कल भोजन करने महल में आना. तुमसे बहुत सी बातें करनी हैं.” ये कह कर वे फिर अपने हाथी पर बैठ कर आगे निकल गए.
रामकिसन राजा जी के इस व्यवहार पर हक्का-बक्का था. उधर साहूकार गोपीचंद जो ये सारा नजारा देख-सुन रहा था भयभीत हो गया कि ‘जिस आदमी को वह मामुली कास्तकार समझ रहा था वह तो राजा जी का खास मित्र है.’
उसने रामकिसन को अपने ठीये पर बुलाया और कहा, “तुम कल आये थे, मैंने तुम्हें जेवर देने से मना कर दिया था पर ऐसी कोई बात नहीं है. तुम अपने जेवर लेकर जाओ. मैं मजाक कर रहा था.” ये कहते हुए उसने अपने तिजोरी में से जेवरों की पोटली निकाल कर लौटा दी. और ये भी कहा, “तुम राजा जी के मित्र हो इसलिए मैं तुमसे ब्याज भी नहीं लूंगा.”
रामकिसन खुशी-खुशी जेवर लेकर घर लौट आया. पत्नी विद्यावती की विद्या बहुत काम आई. आज विद्यावती फूले नहीं समा रही थी. उसने पति से कहा, “पहले राजा जी को धन्यवाद देकर आओ.”
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