राजस्थान में कंजरों की बस्ती गाँव के बाहर रहती थी. अभी भी शायद ये स्थिति बरक़रार होगी. ये एक जरायम पेशा (अपराध वृति) के कबीले जैसे, अनपढ़ व जाहिल किस्म के लोग होते हैं. इनकी औरतें भी प्राय: अनैतिक कार्य करती हैं. रात्रि में दूर-दूर तक छापा मार कर चोरी-सेंधमारी करना इनके बाएं हाथ का खेल होता है.
कहीं अगर ताले टूट जाये, मकानों में चोरी हो जाये तो पुलिस को पहला शक कंजरों पर जाता है. कई कंजर तो हिस्ट्री सीटर भी हैं, जिनका पूरा पुलिस रिकार्ड रखा जाता है. पकड़े जाते हैं, कोई गुनाह कबूल भी कर लेता है, पर अधिकतर इतने पक्के होते हैं कि तीसरी डिग्री का प्रयोग करने के वावजूद पुलिस कुछ भी नहीं उगलवा पाती है. वर्तमान में सरकारों ने इनको समाज की मुख्य धारा में ढालने के लिए समाज कल्याण विभाग के मार्फ़त अनेक कार्यक्रम बना रखे हैं. इस दिशा में कितना काम हो चुका है या हो रहा है? कुछ कहा नहीं जा सकता है.
ऐसा ही एक गाँव है बेरखेड़ा जहाँ सिर्फ कंजर लोग ही रहते हैं. उनका सरदार था हल्कू जिसे सब लोग ‘गरू’ कहते थे. सब उसका कहना मानते थे. उसका अपना तौर तरीका था. वह चोरी करने के लिए दिशा निर्देश दिया करता था, और अपना हिस्सा लेता था. उसने पूरे गाँव के मर्दों को आदेश कर रखा था कि कोई मंदिर नहीं जायेगा तथा कथा-कीर्तन नहीं सुनेगा. सब लोग उसकी बात को पत्थर की लकीर समझते थे.
एक गबरू जवान किसनू अपने फन में उस्ताद हो गया था. सैकड़ों चोरियां करके नाम कमा चुका था. पुलिसवाले उसे अक्सर थाने में तलब करते रहते थे. थाने वालों को वह कुछ चटाता ही रहता होगा पर इस बारे में कुछ कहना पुलिस को नाराज करना जैसा होगा. किसनू गरू के निर्देशानुसार पांच कोस दूर गोरान्पुरा गाँव में लखनलाल जायसवाल के घर को रात में खंगाल लाया. बड़ा हाथ मारा था. लाखों का माल समेट कर वापस आ रहा था तो रास्ते में भीरारिया गाँव में बीचों बीच होकर जाने का रास्ता था जहाँ रात में भगवत कथा हो रही थी. किसनू ने जेब से रुई निकाली और दोनों कानों में ठूँस ली ताकि कथा वाचक की कोई बात उसके कानों में ना घुस पाए. पर हुआ क्या कि जब वह कथा स्थल के नजदीक था तो एक कान की रुई अचानक निकल कर गिर गयी. उस वक्त कथा वाचक अपने कथांश में कह रहे रहे कि “भूत-प्रेतों की छाया जमीन पर नहीं पड़ती है, उनके पैरों के पंजे पीछे की तरफ उलटे होते हैं जो जमीन को नहीं छूते. वे जूते भी नहीं पहनते हैं.”
किसनू को इतनी बात सुननी ही पडी क्योंकि कान में डालने के लिए उसके पास अतिरिक्त रुई नहीं थी. वह अंगुली कान के डाल कर आगे निकल गया, और अपने घर आ गया. उसने गरू को उसका हिस्सा भी पहुंचा दिया तथा बेफिक्र हो गया. ये उसकी आम दिनचर्या ही थी.
उधर लखनलाल जायसवाल ने थाने में रिपोर्ट की और प्रशासन को हिला कर रख दिया. इल्जाम ये लगाया कि ये सब पुलिस की मिली भगत से हो रहा है. विधान सभा में भी बात उठ गयी. अखबारों ने इसे फ्रंट पेज पर छापा. पुलिस के लिए ये बड़े शर्म की बात कहे जाने लगी. दस दिनों तक जब कोई सुराग नहीं मिला तो थानेदार बारियांम सिंह झाला ने तुक्का लगाया, ‘हो सकता है ये काम किसनू कंजर का ही हो क्योंकि इतनी सफाई से वही ऐसा काम कर सकता है.’ थानेदार को ये भी मालूम था कि किसनू हाल में ही जेल से छूट कर आया है. झाला ने सोचा कि मार पड़ने से तो वह कबूलेगा नहीं, उसे नए ढंग से डराया जाये. अत: उसने काले कपड़े व मेकअप करके एक डरावना चेहरा बना लिया. रात के अँधेरे में जीप गाँव के बाहर ही खड़ी करके अकेले सीधे किसनू के ठिकाने पर दस्तक दी.
बाहर से आवाज भारी करके किसनू को पुकारा तो अन्दर से उसने पूछा, “कौन है?”
भूत ने कहा, “काला भूतड़ा हूँ. बाहर निकल.”
किसनू जब बाहर आया तो देख कर सचमुच भयभीत हो गया, कांपने लग गया. भूतड़े ने कहा, “गोरानपुरा से जो माल लाया है, उसमें मेरा भी हिस्सा है. निकाल, वरना मैं तेरा सर्वनाश करके जाउंगा.”
किसनू घबराहट में बोला, “अभी लाता हूँ.” और ये कह कर वह जब घर के अन्दर जेवरात निकालने लगा तो अचानक उसे कथावाचक की कही हुई बात याद आ गयी. उसने झट टार्च टटोली और फिर बाहर आकर देखा तो भूत के पैरों में जूते हैं और पैर सीधे भी है, जमीन पर टिके हैं, साथ ही छाया भी पड़ रही है. किसनू भी खेला-खाया खिलाड़ी था समझ गया कि ये कोई भूत नहीं है, ठग है. उसने आव देखा न ताव एक लकड़ी से थानेदार झाला को दे मारी. झाला जब तक सम्भलते, हल्ला हो गया. झाला को घेर लिया गया. पर जब गरू आया तो उसने झाला का परिचय पाकर आदेश दिया कि थानेदार को उसका हिस्सा दे दिया जाये क्योंकि वह बड़े काम के आदमी है. एक पोटली में अपना हिस्सा लेकर थानेदार झाला लौट कर अपने जीप पर आकर सोचने लगे कि 'इसकी पूरी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों तक किस प्रकार पहुंचाई जाये.'
उधर जब किसनू ने गरू को राज की बात बताई तो गरू को बहुत ताज्जुब हुआ. उसने कहा हमारे पुरखे गलती पर थे, अगर कथा में इतनी बड़ी बात बताई जाती है तो हमको इससे परहेज नहीं करना चाहिए.
इस प्रकार गरु ने अपने गाँव में कथा कीर्तन कराने के लिए दूर वामन गाँव से पंडितों को बुलाया. कहते हैं कि इसके बाद कंजरों के जीवन में काफी सुधार आ गया है. उन्होंने चोरी चकारी करना छोड़ दिया है.
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