लखनऊ के गोमती नगर की वैशाली बड़ी शोख हसीना लड़की थी. चुलबुली, आकर्षक, व अत्यधिक मॉडर्न. स्कूल से लेकर कॉलेज तक सभी जगह वह चर्चा में रहती थी. उसके अनेकानेक ब्वायफ्रेंड थे. एक दिन उसकी शादी अहमदाबाद के हितेन वन्जारा से बड़ी धूमधाम से हो गयी. वह अन्य बहू-बेटियों की तरह ही ससुराल चली गयी. इधर उसके मित्रों को ऐसा लगाने लगा कि लखनऊ की तो रौनक ही खतम हो गयी है. सबसे ज्यादा उदास व विरह में व्याकुल हुआ जतिन, जिसने उसकी याद में खाना-पीना कम कर दिया. वह रात-दिन उसकी फोटो सामने रख कर तड़पता था.
एक दिन उसका एक पुराना कवि मित्र मनोहर उसको मिला जिसने उसको बताया कि वह किसी कार्यवस एक सप्ताह के लिए अहमदाबाद जा रहा है. ये जानकार जतिन को बहुत खुशी हुई और उसने अपने मित्र को हाले दिल सुनाया. मनोहर ने उससे कहा कि वह वृथा वैशाली का ख़याल पाले हुए है क्योंकि वैशाली के तो उसके जैसे दर्जनों मित्र थे. दूसरा अब उसकी शादी हो गयी है और अपने गृहस्थ जीवन में मस्त होगी. अत: अब ये खामखायाली है. लेकिन जतिन की दीवानगी तो पहले से परवान चढी हुई थी वह बोला, “तुम मेरा एक काम कर देना, एक यादगार अंगूठी, जो मैं उसे नहीं दे पाया वह उसको देकर आना.”
मनोहर ने कहा, “ठीक है, जब तुम यही चाहते हो तो मैं तुम्हारी अंगूठी अवश्य पहुँचा दूंगा पर पहले मैं उससे पूछूँगा कि भेजने वाले ‘दिलवर’ का नाम बता? अगर उसने तेरा नाम बता दिया तभी मैं उसको अंगूठी दूंगा अन्यथा नहीं.”
जतिन बोला, “देख लेना वह अंगूठी देखते ही मुझे याद करेगी.”
इस प्रकार मनोहर अपने टूर पर अहमदाबाद पहुँचा और पते के अनुसार बन्जारा परिवार से मिलने गया. पीहर का कुत्ता भी कहते हैं कि प्यारा लगता है. मनोहर का सभी ने स्वागत सम्मान किया, और अकेले में जब उसने वैशाली से कहा कि उसके एक चाहने वाले ने एक अंगूठी भेजी है और उसका नाम बताएगी तो उसको दी जायेगी.
वैशाली थोड़ा पशोपेश में पड़ गयी लेकिन अपनी स्टेट फारवर्ड आदत-प्रकृति के अनुसार उसने अपने प्रिय मित्रों का नाम लेना शुरू किया, “अमकना?” “नहीं.” “ढीमकना?” “नहीं.” “अलाना?” “नहीं.” “फलाना?” “नहीं.” “वो?” “वो भी नहीं.” इस तरह जब लिस्ट सत्तर-बहत्तर तक पहुँच गयी तो मनोहर ने कहा, “जरूर गलतफहमी का मामला है.” शुभकामनाएं दे कर वह विदा हो गया.
अपने मित्र जतिन को उसने दर्द भरा पत्र लिखा, “रो-रो नयना तू मत खोइयो, मैंने लिख दई पत्तर में;
तेरो नाम यहाँ पर प्यारे, सत्तर में ना बहत्तर में...”
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यथार्थ कथा।
जवाब देंहटाएंदीपावली पर अनन्त शुभकामनाएँ!!
वाह... बढ़िया कहानी पढ़कर अच्छा लगा सर समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है ...http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/10/blog-post_27.html
जवाब देंहटाएंvinodpoorn rachana parh kar khushi huee. shubhkamanaye.
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