शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

मैली चादर

जाको प्रभु दारुण दु:ख दीन्हा
ताकी मति पहले ही हर लीन्हा.

कुछ ऐसा ही हुआ इस सेठी परिवार के साथ. परिवार के मुखिया सतपाल सेठी पेपर मिल में स्टेनोग्राफर थे. फोरमैन कालोनी में तीन कमरों वाला घर मिला हुआ था. पत्नी चँचल वास्तव में चंचल व अति महत्वाकांक्षी थी. दो दो साल के गैप में तीन बच्चे उनके हो गए थे. लडकियां थी सोना और मोना, और छोटा लड़का बिट्टू तो सबका लाडला था.

कालोनी में इस परिवार का स्टेंडर्ड आफ लिविंग सबसे ऊँचा था. फर्नीचर से लेकर आम सजावट तक पूरा घर अलग ही दीखता था. घर में पंखे, फ्रिज, रेडियो, टेप रेकार्डर, सब ठाठदार चीजें थी. जब एयर-कूलर का चलन हुआ तो सबसे पहले सेठी जी के खिड़की पर ही लगा. तब फैक्ट्री एरिया में दो-चार आफीसरों के पास कार हुआ करती थी. सेठी जी शौक़ीन मिजाज के थे सो एक पुरानी फिएट कार उनकी दरवाजे पर भी खड़ी रहती थी.

उन दिनों टेलीविजन नहीं आया था. कालोनी के बाहर थोड़ी दूर पर एक सिंगल मशीन वाला सिनेमा टाकीज था. मनोरंजन का ये एकमात्र बड़ा साधन होता था. थियेटर का मालिक दोलाशा भाई एक पारसी था जो बड़ा ऐय्याश व खुराफाती आदमी था. उसकी नजर चंचल पर पडी तो उसने एक दिन अच्छी तनखाह का लालच देकर महिला कोष्टक की गेटकीपर बनने का आफर चंचल को दिया. उसने मंजूर भी कर लिया. यहीं से परिवार के विघटन की नींव पड गयी. कहते हैं कि इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते हैं. यही हुआ. जब चंचल पूरी तरह दोलाशा के चंगुल में आ गयी तो बाजी सतपाल सेठी के हाथों से निकल गयी. झगड़े हुए, लफड़े होते रहे. सेठी ने उससे अघोषित तलाक ले लिया. एक ही छत के नीचे रहते हुए भी अनजानों की तरह बिना बोलचाल के रहे.

कुछ वर्षों के बाद दोलाशा की म्रत्यु हो गयी. थियेटर नए मालिक को बिक गया तो चँचल की नौकरी भी चली गई.
चँचल ने एक प्राइवेट स्कूल के हेडमास्टर पर डोरे डाले और नई जगह गोटी फिट हो गयी. घर में तनाव रहता ही था पर खोखले मॉडर्न होने का दिखावा बरकरार था. पूरी कालोनी में इसे बदनाम घर कहा जाने लगा था. लडकियां सयानी होती जा रही थी.

ये भी है कि जैसे को तैसा मिल ही जाता है. एक नया इंजीनियर वागीश धवन काशीपुर आया तो संयोग से वह इस परिवार से टकराया. परिवार ने इतना प्यार-महोब्बत दिखाया कि वह इन्हीं का हो कर रह गया. बाद में बड़ी बेटी सोना का विवाह आर्य समाज मंदिर में जाकर तुरत-फुरत उसके साथ कर दिया. वागीश के घरवाले इस रिश्ते के बिलकुल खिलाफ थे.

जंवाई को अलग क्वार्टर मिल सकता था, पर चँचल ने लेने नहीं दिया. डेढ़ साल के अंतराल में सोना ने दो बेटियों को जन्म भी दे दिया. इसी दौरान वागीश धवन को मेरठ के किसी दूसरे कारखाने में ज्यादा वेतन पर नौकरी मिल गयी. ससुरालियों के ना चाहने के वावजूद वह वहां से चला गया. चँचल ने अपनी बेटी तथा नातिनों को जाने से रोक लिया. धवन अपनी बीबी व लड़कियों को प्राप्त करने के प्रयास करता रहा. अदालत तक गया लेकिन सोना व उसकी लड़कियों ने धवन के साथ जाने से इनकार कर दिया. उलटे अनेक झूठे गंभीर आरोप उस पर जड़ दिए. धवन ने इसके बाद उन सबको याद करना छोड़ दिया. वह अब कहाँ चला गया. किसी को पता नहीं.

नातिनें डी.ए.वी स्कूल में पढ़ रही थी. घर का माहौल ऐसा था कि फेल होने लगी. ये भी सच था कि घर में बहुत से अनजान विजिटर आने लगे थे. कुछ समय बाद कालोनी में चर्चा हुई कि सोना एक सिख ड्राइवर के साथ पंजाब जाकर बस गयी है. मोना अदालत में एक वकील के साथ काम करने लगी थी. थोड़े दिनों के बाद ये खबर भे फ़ैली कि उस विधुर अधेढ़ वकील के साथ उसने शादी रचा ली है. लड़का बिट्टू घर के तमाम तमाशे व कार्यकलापों से त्रस्त होकर एक दिन गायब हो गया. बाद में कुछ लोगों ने उसे गाजियाबाद में देखा. वह वहाँ क्या करता है? कैसे रहता है? किसी को नहीं पता.

सतपाल सेठी मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गया और अपनी दैनिक क्रियाओं में भी असंयत हो गया तो फक्ट्री ने उसे नौकरी से निकाल दिया. कुछ साथियों ने उसे बरेली के पागलखाने में जा भर्ती करवा दिया. वह अभी भी वहीं है. जाने कब तक रहना होगा कोई नहीं कह सकता.

अब क्वार्टर खाली करना ही था. कालोनी के बाहर रोड साइड पर चँचल ने तीन कमरों वाला एक मकान बनवा लिया. उसमे रहने वाले अब वह स्वयं तथा दो नातिनें रह गयी. कुछ समय बाद बड़ी नातिन भी एक टेलर के साथ चली गयी. उसकी भी खबर ये है कि उसने उस टेलर के साथ निकाह कर लिया है. छोटी नातिन नानी के साथ रह गयी. दुर्भाग्य अकेले नहीं आता है. चँचल बीमार रहने लगी, ज्वर उतरता ही नहीं था. रामपुर जाकर जाँच कराई गयी तो उसे HIV पाजिटिव बताया गया. दिन घसीटते हुए एक रात उसने प्राण त्याग दिए. छोटी नातिन ने सुबह कुछ परिचित जनों को रोते हुए खबर की. लोग डरते-डरते आये. श्मशान ले जाने के लिए काठी तैय्यार की. गिने चुने लोग ही थे.

अर्थी को लेकर बाजार के बीच से चले तो सबने देखा उसके ऊपर की चादर बहुत मैली थी.

***

2 टिप्‍पणियां:

  1. यह एक बहुत ही मर्मस्पर्शी कथा है...सच ही कहा आपने--विनाश काले विपरीत बुद्धि ! एक स्त्री क अहम् ने सारा घर ही नहीं उजाड़ा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी एक श्रापित जीवन बिताने के लिए मजबूर कर दिया...स्त्री एक ऐसी ताक़त है जो घर को बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है...यह एक ज्वलंत उदाहरण है इस बात का की एक औरत का उस क बच्चों की सफलता में कितना बड़ा योगदान होता है!

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  2. संगीता जी कथानक की सही भावना को समझने के लिए हार्दिक धन्यवाद.

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