शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

मक्कारपुरा


उस गाँव का नाम पहले से मक्कड़पुरा था, पर वहाँ के लोगों के बात-व्यवहार से उसका नाम लोगों की जुबान पर मक्कारपुरा चढ़ गया. खुद गाँववासी भी अब गाँव का नाम मक्कारपुरा ही बताते है. क्यों ना हो, जब पूरे गाँव के लोग हर बात पर मक्कारी करते हों तो यथा नाम तथा गुण वाली बात भी फिट बैठ गयी.

एक सर्दियों के दिनों की शाम जब हल्की बारिश की फुहार भी चालू थी, किसी बच्चे ने आकर खबर दी कि टोनी नाम का बच्चा कुए में गिर गया है. हल्ला होते ही लोग भाग कर कुएं के पास गए, वहाँ भीड़ लग गयी पर उस ठण्ड में झुरमुट अँधेरे के बीच कोई भी कुएं में उतरने के लिए राजी नहीं था. अच्छे अच्छे नौजवान कार्यकर्ता मुँह चुरा रहे थे एक तरह से मक्कारी कर रहे थे. अपनी बला टालने के लिए ग्राम सभा सदस्य सुन्दरलाल बोला, अरे, बाल्टी निकालने वाली काँटों की रस्सी लाओ, उसको पकड़ कर टोनी बाहर आ जाएगा.

उस हबड़-तबड़ में टोनी का बाप कांटे वाली रस्सी बाल्टी सहित ले आया और कुएँ में डाल दी. लोग सभी ऊपरी मन से ये सब कर रहे थे क्योंकि इतनी देर तक बच्चे के पानी में बचे रहने की कोई उम्मीद नहीं थी. लेकिन उनके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा जब नीचे बाल्टी किसी ने पकड़ ली. धीरे-धीरे रस्सी को खींचा गया तो देखा कि गाँव के सबसे बूढ़े और कमजोर आदमी रहीम चाचा टोनी को बगल में लेकर बाहर रस्सी के सहारे बाहर आ गए.

सबने ताली बजाई, वाह-वाह किया. वे दोनों ठण्ड से कांप रहे थे, सीधे नजदीक में पंचायत भवन में ले गए. सब लोग बड़े हैरत में थे, उत्साहित भी थे. इतने में एक आदमी बोला, देखा, रहीम चाचा का कमाल, कोई नौजवान हिम्मत नहीं कर पाया; इन्होंने कर दिखाया.

सुन्दरलाल बोला, चाचा हम तुम्हारा नागरिक सम्मान करेंगे.

इस पर रहीम चाचा बड़ी तुर्सी के साथ बोले, तुम्हारे नागरिक सम्मान की ऐसी की तैसी, पहले ये बताओ कि मुझे धक्का किसने दिया था?
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